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मृत खदानों को नया प्राकृतिक जीवन देने की कोशिश

स्टुअर्ट ब्राउन
२० जनवरी २०२३

कोयले और धातुओं के खनन के बाद बने गड्ढे अब नए तरीके से इस्तेमाल हो रहे हैं. वे कहीं खुशबू बिखेर रहे हैं तो कहीं स्वादिष्ट भोजन दे रहे हैं. डीडब्ल्यू ने ऐसी ही तमाम खानों की पड़ताल की है जिनका नए तरीके से उपयोग हो रहा है.

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तस्वीर: picture alliance/Andreas Franke

अगले दशक तक दुनिया भर में जैसे ही कोयले के उपयोग के खात्मे की प्रक्रिया प्रभाव में आएगी, कोयला खदानों के उपयोग और उनके पुनर्जीवन के तरीकों को खोजने की भी जरूरत है. हालांकि दुनिया के कुछ हिस्सों में यह शुरू भी हो चुका है. ये वो तरीके हैं जो न सिर्फ पर्यावरण और जलवायु को लाभ पहुंचाने वाले हैं बल्कि स्वाद और सुगंध भी बिखेर रहे हैं.

पूर्वी जर्मनी में खदानों को झील में बदल दिया गया

एकीकरण से पहले पूर्वी जर्मनी कोयला खदानों का पॉवरहाउस था लेकिन बर्लिन की दीवार गिरने के बाद यह उद्योग धराशायी हो गया. उसके तुरंत बाद, लूसेशिया क्षेत्र की 25 खुले मुंह वाली लिग्नाइट खदानों को खूबसूरत झील में तब्दील कर दिया गया.

ब्रांडेनबुर्ग और सैक्सनी राज्यों में फैले हुए स्प्री और ब्लैक एल्स्टर समेत कई प्रमुख नदियों के पानी को इन पूर्व खदानों तक पहुंचाया गया. साथ ही करीब तीस हजार जानवरों और पौधों की प्रजातियों को भी इस क्षेत्र में पहुंचाया गया है जिससे जैव विविधता में बढ़ोत्तरी हुई है.

इसके बाद से ही खासतौर पर गायर्सवाल्डे और पार्टवित्स झील तब से छुट्टियों के लिए हॉट स्पॉट बन गए हैं. पार्टवित्स झील को लोअर लूसेशिया के एक गांव गायर्सवाल्डे में स्थित एक लिग्नाइट खदान में बनाया गया था और साल 2015 में इसे पूरी तरह से भर दिया गया. झील का साफ फिरोजी रंग क्विकलाइम की वजह से है जिसे निष्क्रिय खदान की एसिडिटी को बेअसर करने के लिए पानी में मिलाया गया है. लेकिन तैराकी और नौका विहार के लिए अच्छी जगह होने के बावजूद यहां पौधों और पशु जीवन के लिए बहुत कम इंतजाम किया गया है.

झील के कछार पर अंगूर की खेती
झील के कछार पर अंगूर की खेतीतस्वीर: Patrick Pleul/dpa/picture-alliance

इस बीच, पूर्व में मॉयरो ओपेनकास्ट खदान की ढलानों पर अंगूर की किस्में पनप रही हैं जो अब ग्रोसरॉशेन झील बन चुकी है. जानकारों का कहना है कि उत्खनन स्थलों पर खासतौर पर पाई जाने वाली अम्लीय मिट्टी यूं तो पौधों की वृद्धि को रोक सकती है लेकिन अंगूर की खेती के लिए यह उत्कृष्ट है. शराब उत्पादक मौजूदा समय में इस पूर्व खदान में उगाए गए अंगूरों से तीन सफेद वाइन, एक रोज, एक रेड वाइन और एक स्पार्कलिंग वाइन बना रहे हैं.

सोने की खदान हरी-भरी हो गई

इस बीच, न्यूजीलैंड में 2016 में बंद कर दी गई एक खुले मुंह वाली सोने की खदान को एक ऐसे नए स्वरूप में विकसित कर दिया गया है कि वह एक प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र जैसा ही लगता है. करीब 260 हेक्टेयर के इस इलाके के आधे से ज्यादा हिस्से को इसके आस-पास की पहाड़ी से उकेरा गया है और पूरी तरह से हरा-भरा बना दिया गया है. यह रीफ्टॉन रेस्टोरेशन प्रोजेक्ट का हिस्सा है जिसे ओशियाना गोल्ड नाम की खनन कंपनी ने ही तैयार किया है और वही इसका रख-रखाव भी करती है.

खदान के गड्ढे बन गए सुंदर झील

अब तक, बीच और स्थानीय मनुका प्रजाति के करीब आठ लाख पौधों को इस इलाके में लगाया गया है. इसके अलावा इस साल के अंत तक ऊपरी हिस्से में करीब दो लाख पौधे और लगाए जाने हैं. साथ ही करीब 64 हजार वेटलैंड पौधे एक छिछली झील के किनारों पर होंगे. ये वेटलैंड पुराने टेलिंग डैम को स्थिर बनाए रखने और इस इलाके को पक्षी जीवन से समृद्ध करने के प्रयास का हिस्सा हैं.

ओशियाना गोल्ड के पर्यावरण सलाहकार मेगन विलियम्स कहते हैं, "वेटलैंड के पौधों को अपनी सोच से भी बेहतर करते देखना और कम समय सीमा में और प्रजातियों को आते और उनके बीच रहते हुए देखना वास्तव में एक अच्छा अनुभव है.”

बचे हुए चट्टान को फिर से आकार देना और जमीन पर नया रूप देना भी उस स्थल पर जैव विविधता को बढ़ाने के प्रयास का हिस्सा है. इसे पहचान पाना बहुत मुश्किल है कि एक दशक पहले यह किसी खदान के गड्ढे के रूप में था. इस पूर्व खदान को भविष्य में देखने के लिए आने वाले लोगों के बारे में विलियम्स कहते हैं, "आप जो कुछ भी देखने जा रहे हैं, उसे देखकर आश्चर्यचकित हो जाएंगे. क्योंकि यह अब वैसा नहीं दिखेगा जैसा कि साल 2012 में दिखता था.”

लैवेंडर ने गंदे खदान स्थल को चमकाया

अमेरिका में खदानों के इन गड्ढों के पुनर्वास के लिए खनन कंपनियों को बाध्य किया जाता है, बावजूद इसके कि ज्यादा लागत की वजह से बहुत से गड्ढे यूं ही छोड़ दिए जाते हैं. खदानों से निकलने वाले पत्थरों और यहां की मिट्टी में इतने ज्यादा रासायनिक अपशिष्ट होते हैं कि बिना मिट्टी की पर्त बिछाए वनीकरण करना बहुत ही मुश्किल है. लेकिन वेस्ट वर्जीनिया के बड़े खदान क्षेत्र में ऐसी ही मिट्टी में एक पौधा उगा है, जिसका नाम है, लैवेंडर.

सूखे इलाके में आसानी से उगने वाला यह पौधा भूमध्यसागर के चारों ओर सूखी, पथरीली मिट्टी में एप्लेशियन बोटेनिकल कंपनी की मदद से पूर्व खनन स्थलों पर उगाया जा रहा है. कंपनी इस पौधे से सुगंधित तेल बनाती है जो सौंदर्य प्रसाधन और खाद्य पदार्थों के निर्माण में काम आता है. पश्चिमी वर्जीनिया में पुनर्वास के लिए वनों की कटाई बहुत आम बात है लेकिन यह महंगा भी है और इसमें समय भी बहुत लगता है.

एप्लेशियन लैवेंडर उत्पादकों का कहना है कि लैवेंडर को उगाने से जमीन के सुधार की क्षमता में तेजी से वृद्धि होती है. इन उत्पादकों का यह भी कहना है कि उनके खेत रसायन और कीटनाशक मुक्त होते हैं और पौधों को उगाने के लिए बहुत कम पानी की जरूरत होती है. लैवेंडर पर मधुमक्खियां और परागकण भी आते हैं जो यहां की जैवविविधता को बनाए रखने में मददगार साबित होते हैं. पुरानी खदानों के संरक्षण के अलावा लैवेंडर को उगाने में श्रमिकों की भी जरूरत होती है और कोयला उद्योग से बेरोजगार हुए लोगों को यहां रोजगार भी मिलता है.

जीवाश्म ईंधनों से ऊर्जा के नवीनीकृत स्रोतों की ओर

जर्मनी से लेकर चीन तक, सोलर फार्म्स इन निष्क्रिय खदानों से निपटने के एक लोकप्रिय समाधान साबित हो रहे हैं. जर्मनी के कॉटबुस शहर में लूसेशिया कोयला खदान में बनी एक मानव निर्मित झील सबसे बड़ी तैरती सोलर फार्म बनने वाली है. इस फार्म में इसी साल काम शुरू हो जाएगा और इसकी क्षमता होगी 21 मेगावाट बिजली बनाने की होगी.

इस बीच, स्लोवेनिया के सबसे बड़े सौर ऊर्जा संयंत्र के निर्माण का काम पिछले साल जसावे खनन क्षेत्र में पूरा हुआ. इसके लिए जिस जमीन का उपयोग किया गया, वहां किसी समय कोयला बिजली संयंत्र हुआ करता था. और चीन के भीतरी मंगोलिया स्वायत्त क्षेत्र में करीब 200 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करने वाली बूर्तई कोयला खदान 11.2 लाख सौर पैनलों के साथ फिर से बनाया गया है. यह बताया गया था कि पूरी साइट को फिर से हरा-भरा करने के प्रयासों के असफल होने के बाद विशाल खदान के पुनर्वास के लिए वैकल्पिक पारिस्थितिक साधन के रूप में सौर पैनलों को स्थापित करने का फैसला किया गया.

सौर पैनल अब पुराने गड्ढों को पौधों से भरते हैं जो मॉड्यूल के तहत पनपता है. यह एक दोहरे परिणाम वाला समाधान है जो आर्थिक रूप से फायदेमंद भी है और टिकाऊ भी है. हालांकि खदानों के गड्ढों का पुनर्वास अक्सर महंगा और जटिल होता है लेकिन इन संरचनात्मक रूप से कमजोर जगहों पर इस तरह का बदलाव वैश्विक स्तर पर होने वाले कोयले के परित्याग के साथ बढ़ना तय है.